11 --- कालपुरुष और ब्रह्मांड
ज्योतिष - शास्त्र हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों और खगोल -शास्त्रियों का विज्ञान है . यह आज प्रगति एवं उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच चुका है . ऐसे में ब्रह्मांड की प्रारम्भिक जानकारी से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है कि हमारी पृथ्वी सौरमंडल का सदस्य है . सूर्य के केंद्राभिमुख होकर बुध , शुक्र , पृथ्वी एवं मंगल सहित बृहस्पति , शनि , यूरेनस , नेपच्यून , प्लूटो आदि ठोस सजीव ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे हैं .
फलित ज्योतिष में राहु. केतु तथा चन्द्रमा को भी ग्रहों के साथ मिला दिया गया है , परन्तु खगोलशास्त्र के अनुसार चन्दमा पृथ्वी का उपग्रह है . पृथ्वी और सूर्य के भ्रमण पथ के आमने-सामने दो काल्पनिक बिन्दुओं को राहु-केतु माना गया है . इसके बीच में सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण-भाग तथा पृथ्वी के भ्रमण -पथ के कट जाने वाले बिंदु मात्र राहु-केतु हैं . इन बिन्दुओं के बीच में पृथ्वी फंस जाने के कारण चन्द्रग्रहण तथा चन्द्रमा के फंस जाने पर सूर्य-ग्रहण होता है . यह कहें कि चंद्रग्रहण तब लगता है , जब चन्द्रमा सूर्य के सामने 180 अंश पर यानि पूर्णिमा को होता है . सूर्यग्रहण तब लगता है , जब चन्द्रमा सूर्य से 0 अंश की दूरी यानि अमावस्या को होता है .
जब हम किसी टीले पर रात्रिकाल के दौरान खड़े होकर आकाश की ओर खड़े होकर देखते हैं तो हमें एक घने तारों की पट्टी आकाश में दिखाई देती है . यह तारों की पट्टी ही ' आकाशगंगा ' कहलाती है . इस आकाशगंगा के उत्तर की ओर ध्रुव तथा दक्षिण की ओर सप्तऋषि नामक तारे हैं . सप्तऋषि को पाश्चात्य विद्वान् ' ग्रेट वीर ' कहते हैं , जबकि ध्रुव तारे को ' पोलरीज ' .
पूरे ब्रह्मांड को नापने के लिए कोई सीधा औजार तो हमारे पास नहीं है , परन्तु खगोलज्ञों ने अंडानुमा ब्रह्माण्ड को बीचोंबीच से काटकर इक्वेटर से उत्तर में उत्तरी आकाश तथा दक्षिण में दक्षिणी आकाश मानकर एक वृत्त को 360 अंशों में बाँट दिया है . ये 360 अंश की खड़ी रेखाएं ' देशांतर रेखाएं ' ( LONGITUDE ) कहलाती हैं . पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 12 महीने लगते हैं , जिनको वह 365 दिन 6 घंटे 15 मिनट में पूरा करती है . इस प्रक्रिया से पृथ्वी पर मौसम यानि ऋतुओं का प्रभाव पड़ता है .
इस ब्रह्मांड में ग्रह के संचार एवं संक्रमण -भ्रमण से जो भी ' ज्योति - तरंग ' यानि विकिरण धरती पर पड़ती है , उससे यहाँ का छोटे से छोटा कण भी प्रभावित होता है . उसके प्रभाव से ही सभी जीव-जन्तुओं का उद्भव , विकास और अंत जुड़ा हुवा है अर्थात विकिरण-परिवर्तन से ही इस धरती पर जल , वायु और मौसम बने हैं . जलवायु का मुख्यस्रोत सूर्य है , जिसको एक लम्बोतरे परिपथ के दौरान पृथ्वी चक्कर लगाकर पूरा करती है . ग्रह-पिंडों के अंदर यह घूमने वाली भ्रमण की शक्ति सौर-ऊर्जा का ही कमाल है . अपने गुरुत्वाकर्षण में पृथ्वी ने एक विशेष क्षेत्र में वायुमंडल भी बनाया है , जिसके कारण प्राणवायु ( आक्सीजन ) का निर्माण हुवा है . उसके बाद वायु और ताप के संयोग से जल की उत्पत्ति हुयी . यही जल पृथ्वी की तीन - चौथाई सम्पदा है .
शुद्ध खगोल की दृष्टि से इस विशाल ब्रह्मांड के आगे हमारी पृथ्वी एक धूल के कण के बराबर है . फिर इस पृथ्वी के जीवधारी मानव की स्थिति कितनी सूक्ष्म होगी , यह चिन्तन का विषय है . उस समस्त चराचर ब्रह्मांड में जो भी हलचल और परिवर्तन हो रहे हैं , उनका प्रभाव मनुष्य जीव-मात्र पर पड़ रहा है . इसी कारण वेद में कहा गया है _ ' यत पिंडे तत ब्रह्मांडे ' अर्थात जो भी हमारे इस पिंड रूपी शरीर में विद्यमान है , वही ब्रह्मांड तथा आत्मा रूपी पिंड में है . यह ब्रह्मांड के द्वारा ही संचालित होने वाली मायावी शक्ति का चमत्कार है . इसी कारण बौद्धिक सम्पदा युक्त जीव को ' ब्रह्म ' कहा गया है . इस जीवधारी का मुख्य संचालक ह्रदय है और सिर पर सभी ग्रह-नक्षत्रों का पूरा नियंत्रण है .*****
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