शनिवार, 9 जुलाई 2011

1 ज्योतिष के मूल सिद्धांत 1 ज्योतिष के मूल सिद्धांत

' यतपिंडे तद ब्रह्मांडे ' ज्योतिष का मूल सिद्धांत है . कोई भी वस्तु चाहे स्थावर हो या जंगम , इस विस्तृत ब्रह्माण्ड में , जहाँ निज शक्ति अनुसार दूसरे पदार्थों पर अपना प्रभाव डाल रही है , वहां स्वयं भी अन्य वस्तुओं से प्रभावित हुवे बिना नहीं रह सकती प्रत्येक वस्तु पर समय द्वारा ब्रह्माण्ड का प्रभाव पाया जाता है . अर्थात जिस क्षण में उत्पत्ति अथवा कर्म होता है , उसी क्षण के गुण-दोषों को वह जातक अथवा कार्य लिए होता है . डा. जुंग के अनुसार _' what evar is born or done ai this moment , has the qualities of this moment . अत: वस्तु का स्वरूप ब्रह्मांड के स्वरूप के अनुरूप ही होता है . तभी तो ' यतपिंडे तद ब्रह्मांडे ' का सिद्धांत ज्योतिष तथा अध्यात्म दोनों द्वारा स्वीकृत हुवा है .

जब कोई जीव माँ के उदर से बाहर आता है तो उसी क्षण उस पर ब्रह्मांड के प्रभाव की छाप पड़ जाती है . ठीक उसी प्रकार जिसप्रकार कि फोटोग्राफर की फिल्म पर क्षण भर में , दृश्य अंकित हो जाता है ओर वह व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में ठीक वह गुण जो गुण-दोष कि उसके जन्म के समय प्रकृति ( nature) में उस स्थान पर पाए जाते हैं कि जिस स्थान पर उसका जन्म हुवा है .



इससे स्पष्ट है कि ' पेट से बाहर आने का क्षण ही ' जन्म-समय तथा 'इष्ट ' आदि ज्योतिष का आधार होता है. अब यदि इस ' जन्म-क्षण ' के प्रकृति के गुण-दोष किसी प्रकार ज्ञात किये जा सकें , तो हमें जातक के गुण-दोष का भी पता चल जायेगा . वे गुण-दोष उस व्यक्ति में नेगेटिव फिल्म की भांति बीज रूप में रहेंगे ओर अनुकूल वातावरण पाकर , अनुकूल समय पर , क्रमश: प्रकट होंगे . जन्म आदि समय में बीज रूप में डाले हुवे प्रकृति के उन गुण-दोषों का विस्तृत अध्ययन ज्योतिष-शास्त्र का  दिव्य एवं अनुपम विषय है , जो पूर्णत: चमत्कार से युक्त है .

                                    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें