हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के उन गुण-दोषों को देखने के लिए प्रकृति का गंभीर अध्ययन प्रारम्भ किया . तो उस अध्ययन के फलस्वरूप उन्होंने प्रकृति के स्वरूप के चार भाग प्रमुख रूप से किये . उनका कहना है कि मनुष्य के गुण-दोष इन्हीं चार भागों के गुण-दोषों के प्रतिरूप होते हैं . वे चार विभाग निम्न प्रकार हैं _ ग्रह , राशि , नक्षत्र और भाव .
१- ग्रह _ ' ग्रह ' ( PLANETS ) द्यु-लोक के उन पिंडों( BODIES ) को कहते हैं , जो की सूर्य के चारों ओर घूम रहे हैं . उर्दू में इनको ' सियारा ' कहते हैं . चन्द्र ( MOON ) , मंगल ( MARS ) , बुध ( MERCURY ) , गुरु अथवा बृहस्पति ( JUPITOR ) , शुक्र ( venus ) तथा शनि ( SATURN ) ये छः ग्रह हैं . सूर्य जिसकी ये सब ग्रह प्रदक्षिणा करते हैं . वास्तव में सूर्य ग्रह नहीं , अपितु सितारा ( STAR ) है . ग्रह ( सियारे ) में यह अंतर है कि ग्रह या सियारा ( planet ) तो तारे ( star ) के चारों ओर घूमते हैं , परन्तु तारा ( STAR ) अपने स्थान पर स्थिर प्राय: रहता है .
फिर भी , क्योंकि पृथ्वी की अपनी कक्षा पर गति के कारण सूर्य में गति प्रतीत हो रही है . और फलित ज्योतिष में प्रतीति का भी एक विशेष महत्त्व है . प्रतीति के महत्त्व के कारण फलित ज्योतिष के आचार्यों ने सूर्य को भी एक ग्रह ही माना है . इस प्रकार सूर्य को मिलाकर सात ग्रह हो जाते हैं .
२- राशि _ ऋषि-मुनियों ने जब आकाश में विचरने वाले ग्रहों के पथ ( PATH ) का अध्ययन किया तो उन्होंने देखा कि यह पथ अंडाकार दीर्घ अंड वृत्त-आकार है ( ELLIPSE ) है और अपनी एक विशिष्ट स्थिति रखता है .
ऋषियों ने यह भी देखा कि करोड़ों -अरबों नक्षत्र-मंडलों का भी इस पथ पर प्रभाव है . क्योंकि ग्रह-पथ ( ZODIAC ) भी स्थिर है और उस पर प्रभाव डालने वाले नक्षत्र-समूह भी क्रियात्मक रूप से स्थिर हैं . अत: ऋषियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि ग्रहपथ का प्रत्येक विभाग अपना एक स्थिर एवं विशिष्ट प्रभाव रखता है . अब उनके सामने उस प्रभाव के वर्गीकरण का प्रश्न उपस्थित हुवा तो ग्रहों का वर्गीकरण ( CLASSIFICATION ) और उनके विशिष्ट गुण-दोष तो उनके सामने थे ही . ग्रहों के कारकत्व का तब उन्हें ज्ञान हो ही चुका था _ उन्होंने उस कारकत्व का लाभ उठाकर राशिपथ के भिन्न-भिन्न भागों को विभिन्न ग्रहों के गुणों के आधार पर वर्गीकरण कर डाला और देखा कि इस प्रकार राशिपथ के बारह भाग किये जा सकते हैं .
१२ बारह राशियों के नाम स्थिर अंक के अनुसार निम्न प्रकार हैं _
- मेष ----- स्वामी ग्रह ___ मंगल ; भाव __ रूप .
- वृष----- स्वामी ग्रह ___ शुक्र ; भाव ___ भोग्य.
- मिथुन ----- स्वामी ग्रह ____ बुध ; भाव ____ श्रम .
- कर्क ------- स्वामी ग्रह ____ चन्द्र ; भाव ____ मन .
- सिंह ------ स्वामी ग्रह ____ सूर्य ; भाव ____ बुद्धि .
- कन्या ----- स्वामी ग्रह ____ बुध ; भाव ___ नीति .
- तुला ------ स्वामी ग्रह ___ शुक्र ; भाव ____ शक्ति .
- वृश्चिक ------ स्वामी ग्रह ___ मंगल ; भाव ___ आयु .
- धनु ------- स्वामी ग्रह ____ गुरु ; भाव ___ धर्म .
- मकर ----- स्वामी ग्रह ___ शनि ; भाव ___ धार्मिक कार्य .
- कुम्भ ----- स्वामी ग्रह ___ शनि ; भाव ____ निष्काम कर्म .
- मीन ----- स्वामी ग्रह ___ गुरु ; भाव ___ मोक्ष .
5 _सिंह -- सूर्य
4 _ चन्द्र
1 , 8 _ मंगल
3 , 6 _बुध
9 ,12 _ गुरु
2 , 7 _ शुक्र
10 , 11 _ शनि
3 . नक्षत्र
जन्म लेने वाले व्यक्ति पर राशियों के प्रभाव का वर्गीकरण ग्रहों के स्वरूप के अनुकूल करने के अनन्तर हमारे ऋषियों की दृष्टि और अधिक सूक्ष्म तथ्य पर पहुंची . उन्होंने खोज निकाला कि यदि आकाश में राशि-पथ के 12 भाग न कर उसके 27 भाग किये जाएँ तो एक-एक भाग 360 / 27 = 13 .1 / 3 अंश का होगा . उन्होंने इस विशिष्ट अंश को ' नक्षत्र ' का नाम दिया . राशि और नक्षत्र में अंतर यही है कि राशि 30 * की होती है , जबकि नक्षत्र 13 . 1 / 3 * का होता है . अर्थात राशि से छोटा एवं सूक्ष्म होता है .
जिस प्रकार राशियों के स्वरूप और प्रभाव को ग्रहों के स्वरूप और प्रभाव की सहायता से व्यक्त किया गया ; उसी प्रकार नक्षत्रों से भी जो स्थायी गुण-दोष उनकी दृष्टि में आये , उनका वर्गीकरण भी उन्होंने यह कहकर कर दिया कि अमुक नक्षत्र का स्वामी अमुक ग्रह है . अर्थात अमुक नक्षत्र अमुक-अमुक प्रकार के ग्रह के गुण-दोष अपने में रखता है . संसार में पाए जाने गुणों तथा दोषों के बाहुल्य के कारण ; ग्रहों द्वारा गुणों के वर्गीकरण बढ़ कर और अन्य प्रतीकात्मक ( SYMBOLIC ) साधन नहीं हो सकता था .
4 . _ भाव
ग्रह , राशि और नक्षत्र के विवरण के अनंतर अब भावों के सम्बन्ध में समझना आवश्यक है . जैसे राशिपथ में 12 राशियाँ हैं ; वैसे ही पृथ्वी के बारह कल्पित भाग जन्म लग्न के आधार पर किये गये हैं . इसमें से प्रत्येक भाव भी ग्रहों की भांति संसार के प्रत्येक क्षेत्र में किसी न किसी वस्तु , गुण , धातु इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है . बारह भावों की कल्पना भी सहज रूप से एक योग - शक्ति का ही चमत्कार है . इस कल्पना के मूल में सृष्टि के विकास के और mnushy की उत्तरोत्तर उन्नति का ही रहस्य छिपा हुवा है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें