हमारे ऋषियों और मुनियों की दिव्य सूझ-बूझ और क्रियात्मक पर्यवेक्षण ( PRACTICAL- OBSERVETION ) ने यह खोज निकाला कि राहु और केतु , जो यद्यपि सूर्य द्वारा बनाई गयी पृथ्वी की छाया-मात्र हैं और कोई पिंडात्मक या भौतिक ( MATERIAL ) वस्तु नहीं है . तो भी संसार में उत्पन्न जीवों तथा पदार्थों पर ये राहु और केतु बहुत गंभीर , दीर्घव्यापी आवश्यक और निश्चित प्रभाव डालते हैं . इनके इस प्रभाव को देखकर राहु और केतु को भी ' ग्रहों ' की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया गया है ; यद्यपि उनका अस्तित्व छाया-मात्र ही है .
ऋषियों की यह खोज ज्योतिष में उतना ही महत्त्व रखती है , जितना कि उनकी शून्य ( ZERO ) की खोज गणित -शास्त्र में रखती है . छाया अथवा शून्य के प्रभाव को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता . आज के वैज्ञानिक युग में प्रयोगशालाओं में प्रयोग द्वारा यह तथ्य सिद्ध हो चुका है कि ' छाया ' भी अपना एक परिणाम रखती है , चाहे वह दुष्परिणाम ही क्यों न हो ? क्योंकि देखा गया है कि छाया में पौधे , वनस्पति आदि जीवन रूपी धूप के न मिलने के कारण विसित नहीं हो सकते . इसी प्रकार राहु तथा केतु का प्रभाव भी बहुत अंशों में नकारात्मक , जीवन-शून्य , मारक आदि ही सिद्ध हुवा है .
इस प्रकार ग्रह संख्या में 9 हुवे . हर्शल ( HERSCHEL ) , प्लूटो ( pluto ) तथा नेपच्यून यह तीनों ग्रह आधुनिक खोज के परिणाम हैं . सूर्य के इर्द-गिर्द घूमने के कारण इनको भी ' ग्रह ' ही कहा गया है , परन्तु ये तीन ग्रह पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि मनुष्य-जीवन के अल्प वर्षों को दृष्टि में रखते हुवे और इन तीनों की अति धीमी गति को देखते हुवे , इनके प्रभाव का कोई क्रियात्मक लाभ नहीं उठाया जा सकता . सम्भवतया इसी कारण हमारे ऋषियों ने ग्रहों में इन तीनों को सम्मिलित नहीं किया था . वे ऋषि 9 ग्रहों के आधार पर ही ठीक-ठीक भविष्यवाणी करने और चमत्कारिक फल कहने में समर्थ रहे .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें